बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 अर्थशास्त्र - आर्थिक संवृद्धि एवं विकास बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 अर्थशास्त्र - आर्थिक संवृद्धि एवं विकाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 अर्थशास्त्र - आर्थिक संवृद्धि एवं विकास - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- संतुलित एवं असंतुलित विकास की व्याख्या कीजिए। भारत जैसे विकासशील देश के लिए किस प्रकार का विकास अपेक्षित है?
उत्तर-
संतुलित विकास का अर्थ है किसी अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों तथा उद्योगों का समान रूप से विकास करना अर्थात् उनमें एक साथ निवेश करना।
प्रो. अलक घोष के शब्दों में- "नियोजन के साथ संतुलित विकास का अर्थ है कि अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों का एक ही अनुपात में विकास हो ताकि उपभोग, निवेश और आय समान दर से बढ़ सके।"
संतुलित विकास सिद्धान्त को प्रो. नर्कसे, रोडान तथा लुईस ने समर्थन किया।
नर्कसे के अनुसार, अल्प विकसित देशों में निर्धनता का दुश्चक्र कार्यशील रहता है जो आर्थिक विकास में सदैव बाधा पैदा करता है। यह दुश्चक्र मांग और पूर्ति दोनों ही पक्षों अर्थात् रूपों में लागू होता है। पूर्ति पक्ष की दृष्टि से अल्पविकसित देशों में बचत करने की क्षमता कम होती है क्योंकि वास्तविक आय का स्तर काफी नीचा होता है। कम वास्तविक आय निम्न उत्पादकता का परिणाम होती है जो स्वयं पूँजी के अभाव के कारण पैदा होती है। इसी प्रकार मांग पक्ष की दृष्टि से अल्पविकसित देशों में विनियोग करने की प्रेरणा शिथिल होती है क्योंकि लोगों द्वारा वस्तुओं की मांग कम की जाती है। वस्तुओं की मांग इसलिए कम होती है क्योंकि क्रयशक्ति कम होती है और क्रय शक्ति, निम्न आय के कारण कम होती है। जबकि आय का निम्न स्तर स्वयं नीची उत्पादकता का परिणाम होता है।
इस दुश्चक्र को तोड़ने के लिए यह आवश्यक है कि उत्पादकता में वृद्धि की जाए। लेकिन उत्पादकता में वृद्धि तभी होगी जब बड़े पैमाने पर निवेश किया जाय और यह तभी सम्भव हैं जब लोगों द्वारा वस्तुओं को पर्याप्त मांग की जाती है और उनके हाथ में पर्याप्त क्रय शक्ति हो।
नर्कसे ने जूता उद्योग का उदाहरण देते हुए कहा कि मान लीजिए एक नया जूता उद्योग लगाया जाता है। यदि क्रय शक्ति (उत्पादकता ) के बढ़ाने की दृष्टि से अर्थव्यवस्था में कोई अन्य प्रयास नहीं किये जाते तो जूता उद्योग की अतिरिक्त उपज की पूरी खपत बाजार में नहीं हो सकेगी और कुछ माल बिना बिके रह जाएगे। इसका कारण यह है कि एक तो इस उद्योग में लगे हुए व्यक्ति अपनी अन्य आवश्यकताओं के कारण समस्त आय जूतों पर खर्च नहीं करेगें और दूसरे इस उद्योग के बाहर के लोग भी प्रत्येक वर्ष जूता नहीं खरीदेगें क्योंकि उनके पास अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पहले से धन का अभाव है। अतः स्पष्ट है कि यदि अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में लगे लोगों की क्रय शक्ति बढाने का प्रयास नहीं किया गया तो नीची वास्तविक आय पर बेलोच मांग बाजार के आकार को सीमित कर देगी जिससे निवेश की प्रेरणा घटेगी और फलस्वरूप यह 'नया उद्योग' फेल हो जायेगा।
असंतुलित विकास सिद्धान्त - अल्पविकसित देशों के विकास की स्ट्रैटजी जिससे इन अर्थव्यवस्था को पिछड़ेपन के भँवर से बाहर निकाला जा सके, हर्शमैन असंतुलित विकास सिद्धान्त की बात करते है। हर्शमैन के अनुसार जान-बूझकर सृजित असंतुलन के द्वारा ही आर्थिक विकास लाया जा सकता है। इसका एक तरीका यह हो सकता है कि सरकार अर्थव्यवस्था में अवस्थापना को विकसित करने के लिए विनियोग करे जिसके कारण यातायात, संवहन, टेलीफोन, पोस्टल सेवाएं आदि सुविधाएं विकसित होगी और ये निजी साहसियों को अन्य क्षेत्रों में विनियोजन के लिए प्रोत्साहित करे। दूसरा तरीका यह हो सकता है कि निजी क्षेत्र विनियोग करे जिसके परिणामस्वरूप अधोसंरचना के विकास की कमी पैदा हो और राजनीतिक दबाव के कारण सरकार अवस्थापना को विकसित करने के लिए और विनियोग करने के लिए बाध्य हो जाये। असन्तुलन पैदा करने के पहले रास्ते को हार्शमैन ने सामाजिक उप-परिव्यय पूँजी (social overhead capital - SOC) के विकास का रास्ता कहा तथा दूसरे रास्ते को प्रत्यक्ष उत्पादन क्रियाओं (direct productive activities - DPA) के विकास का रास्ता कहा। पहले वाले रास्ते को अधिक SOC क्षमता का रास्ता तथा दूसरे वाले को SOC की कमी का रास्ता भी कहा सकते है। यद्यपि पहला वाला रास्ता अधिक सरल तथा ग्राह्य लगता है पर हर्शमैन ने SOC की कमी वाले रास्ते पर बल दिया। इस प्रकार हर्शमैन ने उस रास्ते पर बल दिया जिसमें निजी क्षेत्र प्रत्यक्ष उत्पादक क्रियाओं में पहले विनियोग करेंगे जिसके कारण अर्थव्यवस्था में SOC की कमी होगी, सरकार बाध्य होकर SOC में निवेश करेगी। यह क्रिया चलती जायेगी।
भारत जैसे अल्प विकसित देशों की मूल विशेषताओं को देखते हुए अधिकांश विचारक असंतुलित विकास नीति का ही समर्थन करते है क्योंकि इससे निवेश वृद्धि, आय वृद्धि की अपेक्षा अधिक होती है और राष्ट्रीय आय, राष्ट्रीय उपभोग की अपेक्षा ऊँची दर से बढ़ती है। दूसरा भारी उद्योगों को अधिक महत्व दिये जाने के कारण बाह्य मितव्ययिताएँ अधिक प्राप्त होती है। जो आर्थिक विकास के लिये अत्यन्त आवश्यक है। चूँकि विकास की प्रारम्भिक अवस्थाओं में असन्तुलनों का होना अनिवार्य है इसलिए प्रो. मायर का कहना है कि "जब विकासरत देश असंतुलन से बच नहीं सकता भले ही वह इसे पसन्द करे या न करे, तो फिर जान-बूझकर असंतुलन पैदा करना अर्थात् असंतुलित विकास नीति को ही अपनाना अच्छा होगा जिससे तीव्र विकास की सम्भावना अधिक हो।"
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- प्रश्न- आर्थिक विकास का आशय तथा परिभाषा कीजिए। आर्थिक विकास की प्रकृति व महत्व का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास की परिभाषाएँ दीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास की विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास की प्रकृति बताइए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास एवं आर्थिक वृद्धि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाले कारको की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- आर्थिक विकास को निर्धारित करने वाले आर्थिक तत्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास के अनार्थिक तत्वों को समझाइए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास पर मानवीय संसाधन के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जनसंख्या वृद्धि आर्थिक विकास में बाधक हैं?
- प्रश्न- बढ़ती हुई जनसंख्या का आर्थिक विकास पर प्रभाव बताइए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास के मापक बताइये।
- प्रश्न- आर्थिक विकास में संस्थाओं की भूमिका समझाइए।
- प्रश्न- किसी देश के आर्थिक विकास में विदेशी पूँजी की भूमिका की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक संवृद्धि की गैर-आर्थिक बाधाएँ कौन-कौन सी हैं?
- प्रश्न- आर्थिक पिछड़ापन आर्थिक तथा अनार्थिक कारकों का परिणाम है। इस कथन का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास एवं विकास अन्तराल की माप किस प्रकार की जाती है?
- प्रश्न- गरीबी अथवा निर्धनता के अर्थ को स्पष्ट कीजिए, भारत में गरीबी के प्रमुख कारणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विकसित एवं विकासशील देशों की आय एवं सम्पत्ति असमानता में अन्तराल के कारणों का स्पष्ट विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास सूचकांक की धारणा किन मान्यताओं पर आधारित है, तथा मानव विकास सूचकांक निर्माण करने के चरणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- गरीबी रेखा के निर्धारण का क्या महत्त्व है? तथा भारत में गरीबी रेखा के निर्धारण हेतु सरकार द्वारा उठाये गये कदमों पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- प्रसरण प्रभाव को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सापेक्ष गरीबी बनाम निरपेक्ष गरीबी पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मानव विकास सूचकांक (HDI) क्या है? यह मानव विकास में कितने आयामों को मानता है?
- प्रश्न- भौतिक जीवन कोटि निर्देशांक किसने निर्मित किया? भौतिक जीवन कोटि निर्देशांक किन सूचकों द्वारा की जाती है?
- प्रश्न- "कोई देश इसलिए गरीब रहता है क्योंकि वह गरीब है। " स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निर्धनता के दुष्चक्र को तोड़ने के उपाय बताइये।
- प्रश्न- गिनी गुणांक क्या है? गिनी गुणांक कैसे मापा जाता है?
- प्रश्न- गिनी गुणांक का महत्व क्या है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- लॉरेंज वक्र क्या है?
- प्रश्न- वैश्विक भूख सूचकांक क्या है?
- प्रश्न- लिंग सम्बन्धित विकास सूचक क्या है?
- प्रश्न- मानव निर्धनता सूचक क्या है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- खुशहाली सूचकांक क्या है?
- प्रश्न- सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य क्या है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य (MDG) की महत्वपूर्ण विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- सतत् विकास की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थर लुइस द्वारा प्रस्तुत असीमित श्रम आपूर्ति द्वारा आर्थिक विकास के सिद्धान्त का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
- प्रश्न- प्रबल प्रयास सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- नैल्सन का निम्नस्तरीय संतुलन अवरोध का सिद्धान्त की चित्रात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- संतुलित विकास के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए तथा विकासशील देशों के सन्दर्भ में इसकी सीमाएं बताइए।
- प्रश्न- संतुलित विकास के पक्ष में तर्क दीजिए।
- प्रश्न- संतुलित विकास के विपक्ष में विभिन्न अर्थशास्त्रियों द्वारा दिये गये तर्कों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- असंतुलित विकास को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- असंतुलित विकास के सम्बन्ध में विभिन्न अर्थशास्त्रियों द्वारा परिलक्षित किये गये विचारों को प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- संतुलित तथा असंतुलित विकास पद्धति में कौन बेहतर है?
- प्रश्न- हर्षमैन के असन्तुलित विकास सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए तथा विकासशील देशों के लिए इसकी उपयुक्तता का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- संतुलित एवं असंतुलित विकास की व्याख्या कीजिए। भारत जैसे विकासशील देश के लिए किस प्रकार का विकास अपेक्षित है?
- प्रश्न- असंतुलित विकास सिद्धान्त को समझाइये |
- प्रश्न- सन्तुलित विकास के सम्बन्ध में रोजेन्स्टीन रोडान के विचार को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हर्षमैन द्वारा संतुलित विकास के विचार की किस प्रकार आलोचना की गयी है?
- प्रश्न- रोस्टोव की आर्थिक विकास की अवस्थाओं का वर्णन एवं आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- हैरोड तथा डोमर के विकास मॉडल की आलोचनात्मक व्याख्या करते हुए बताइए कि भारत जैसे अल्पविकसित देश में यह कहाँ तक लागू किया जा सकता है?
- प्रश्न- हैरोड द्वारा प्रस्तुत विकास दरों व समीकरण बताइए।
- प्रश्न- हैरोड के विकास मॉडल की आलोचनायें बताइए।
- प्रश्न- हैरोड का विकास मॉडल डोमर के विकास मॉडल से किस प्रकार भिन्न है?
- प्रश्न- हैरोड के विकास प्रारूप का संक्षेप में परीक्षण कीजिए। भारत जैसे विकासशील देशों में यह कहाँ तक लागू होता है?
- प्रश्न- हैरोड - डोमर मॉडल में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- व्यष्टि स्तर पर नियोजन समझाइए।
- प्रश्न- हैरोड - डोमर मॉडल में छुरी-धार सन्तुलन की परिकल्पना को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारत के जनसंख्या वृद्धि की बदलती हुई विशेषताओं पर एक नोट लिखिए।
- प्रश्न- जनांकिकी से क्या अभिप्राय है? जनांकिकी संक्रमण सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जनसंख्या एवं पर्यावरण किस प्रकार एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं तथा आर्थिक विकास को कैसे प्रभावित करते हैं? मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- "जनसंख्या वृद्धि आर्थिक विकास में सहायक है अथवा बाधक।" इस कथन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जनसंख्या का आर्थिक विकास पर तथा आर्थिक विकास का जनसंख्या पर पड़ने वाले प्रभाव का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- पर्यावरण क्या है? इसके कार्यों को स्पष्ट कीजिए?
- प्रश्न- जनसंख्या नीति 2000 की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- समावेशी विकास की आवधारणा या महत्व क्या है?
- प्रश्न- समावेशी विकास के समक्ष चुनौतियाँ क्या हैं?
- प्रश्न- समावेशी विकास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- सरकार की विफलता के कारण बताइए।
- प्रश्न- बाजार विफलता को ठीक करने के उपाय बताइये।
- प्रश्न- सरकार की विफलता का अर्थ क्या है तथा इसके क्या कारण हैं?
- प्रश्न- सरकार की विफलता का अर्थ बताइए।
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- प्रश्न- मानवीय पूँजी निर्माण की समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
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